१ मई १९५९ को जन्मे श्री बृजमोहन अग्रवाल आज प्रदेश की राजनीति में प्रमुख हस्ताक्षर हैं. अपने पिता श्री रामजी लाल जी अग्रवाल की समाज सेवा से संस्कारित श्री बृजमोहन समाज सेवा की भावना को लेकर आगे बढ़े. उन्हें नहीं पता था कि समाज सेवा के लिये उठे ये कदम उन्हें और अच्छी समाज सेवा करने के लिये राजनीति की डगर पर ले जायेंगे. १९७६ से अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में कार्य आरंभ किया और बनारस में हुये राष्ट्रीय अधिवेशन में भाग लिया. १९८० में विद्यार्थी परिषद का अधिवेशन आयोजित हुआ जिसमें उन्होंने छात्र स्वागत समिति बनाने में अहम भूमिका निभाई. कालेज में पढ़ने के दौरान उन्होंने पाया कि छात्र राजनीति में जो लोग आते हैं वे दादानुमा बाहुबली ही होते हैं. उन्होंने कभी सीधे-सादे या पढ़ने लिखने वाले लड़के को छात्र राजनीति करते नहीं देखा था. श्री अग्रवाल ने यह भी देखा कि इन दादा नुमा लड़कों के भय के कारण अच्छे लोग राजनीति से किनारा कर लिया करते थे. यह सब देखकर उन्हें बहुत पीड़ा हुई.
उन्होंने मन ही मन यह प्रण किया कि छात्र राजनीति के इस मिथक को तोड़ना होगा कि अच्छे लोग सफल छात्र नेता नहीं हो सकते. उनके इस निर्णय को राष्ट्रीय स्वयं सेवक की शाखाआें से मिले राष्ट्रवाद ने और बल दिया. उनके घर के लोग और मित्रगणों ने भी इस निर्णय में उनका साथ दिया. घर परिवार का सहयोग ही उनकी सबसे बड़ी ताकत थी और आज भी है. अपनी स्वच्छ छवि के चलते वे छात्र राजनीति में काफी लोकप्रिय हुये और १९८१-८२ में दुर्गा कालेज रायपुर और १९८२-८३ में कल्याण कॉलेज भिलाई के छात्रसंघ अध्यक्ष बने. छात्र राजनीति के दौरान शासकीय आयुर्वेदिक महाविद्यालय, रायपुर में छात्र आंदोलन के दौरान उन्हें सात दिन जेल के सेल के कटु अनुभव भी हुये. इस दौरान उन्हें बहुत प्रताड़ना भी दी गई. रायपुर और भिलाई के कॉलेजों में मिली लगातार दो सफलताआें ने उनके अंदर के नेता को पुष्पित और पल्लवित कर दिया था. आरएसएस की पृष्ठभूमि ने उन्हें भाजपा का सदस्य बनाया और १९८६ में भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रदेश मंत्री बने.
१९८८-९० के दौरान वे भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रदेश उपाध्यक्ष भी रहे. भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेताआें ने इस हीरे को पहचाना और तराशने के लिये १९९० में उन्हें भाजपा की टिकट दी. हीरे ने भी जौहरियों को निराश नहीं किया और वे रायपुर सीट से जीतकर विधायक बने और फिर मंत्री भी. वे अविभाजित मध्य प्रदेश के पर्यटन राज्य मंत्री रहे. उन्होनंे यह बात कभी नहीं भूली कि वे जो भी हैं रायपुर की जनता की बदौलत हैं जिसने उन्हें चुना है. अन्य नेताआें कीे तरह वे कभी जनता को नहीं भूले और जनता ने भी उन्हें पलकों पर बिठाया. किसी भी राजनेता के लिये किसी विधानसभा सीट से लगातार चार बार चुनकर आना टेढ़ी खीर होती है, लेकिन श्री बृजमोहन इस मामले में अपवाद हैं. उनकी मिलनसार छवि का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनसे मिलने वाले हर व्यक्ति को यह लगता है कि वह उनका -खास है. यही उनकी खासियत है कि लोग उनसे जुड़ते हैं तो फिर टूटते नहीं.
आज वे छत्तीसगढ़ में एक -मास लीडर, एक जन-नेता के रुप में जाने जाते हैं. उनका काफिला प्रदेश के किसी भी हिस्से से गुजरे उनके अनुयायी उनके स्वागत के लिये घंटों इंतजार करते नजर आते है. वे वादा करते हैं तो निभाते हैं. जिस तरह भगवान के घर देर है मगर अंधेर नहीं है ठीक उसी तरह यदि किसी कार्यक्रम में श्री बृजमोहन आने वाले होते हैं तो वे आते हैं, देर से ही सही.
अभी हाल ही में उन्होंने पाली में रात बारह बजे एक तहसील कार्यालय का उद्घाटन किया और मजे कि बात यह कि वहां आयोजक के साथ-साथ जनता भी उनका इंतजार कर रही थी. यह कार्यक्रम संपन्न करने के बाद रात डेढ़ बजे वे अंधेरे में चैतूरगढ़ के पहाड़ पर देवी-दर्शन करने और भूमि-पूजन करने के लिये तत्पर थे. उनकी यह मेहनत देखकर लगता है कि उनका जन्म मजदूर दिवस के दिन होना महज संयोग नहीं है. वे लाल बत्ती से उतर कर एक मजदूर की तरह पसीना बहाने को तत्पर रहते हैं . वे कभी अपने आप को खास नहीं मानते और मिलने वाले को भी इस बात का अहसास नहीं होने देेते. छत्तीसगढ़ में इनसे मिलनसार और मेहनती मंत्री मिलना कठिन है. उनका घर रात तीन बजे तक लोगों के लिये खुला रहता है. देर रात तक उनके घर पर मिलने वालों का तांता लगा रहता है और उनके माथे पर कोई शिकन नहीं होती. उनकी याददाश्त इतनी जबर्दस्त है कि वे पूरे राज्य में उनसे मिलने वाले पत्रकार, भाजपा कार्यकर्ता, शुभचिंतकों आदि को नाम से पुकारते हैं. वे किसी काम को टालते नहीं. न करने योग्य कार्यों को वे स्पष्ट मना कर देते हैं और करने योग्य कार्यों को करने में देरी नहीं करते. राजनीतिज्ञ व्यक्ति की अध्यात्म में रुचि होना बहुत मुश्किल वाली बात है लेकिन श्री बृजमोहन इस मामले में अपवाद हैं.
धर्मप्रेमी परिवार का होने के कारण प्रारंभ से ही उनकी साधु-संतो के प्रति अगाध श्रद्धा रही. राजिम कुंभ की शुरुआत और लगातार दो वर्षों तक की सफलता के कारण आज वे साधु-संतो के भी लाडले हैं. राजिम कुंभ के समापन समारोह में प्रसन्न साधु-संतो ने उन्हें -महामंडलेश्वर तक की उपाधि दे डाली. राजिम कुंभ के समापन के कुछ ही दिनों पश्चात उन्होंने विधानसभा में मानसरोवर के यात्रियों को अनुदान देने की बात कहकर धर्मप्रेमियों का दिल फिर से जीत लिया. आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इस नवगठित राज्य में हज-यात्रियों के लिये यह सुविधा पहले से थी. श्री अग्रवाल ने विधानसभा में यह भी कहा कि शासन राज्य के मंदिरों का जीर्णोद्धार करायेगा, पंडित-पुरोहितों की तनख्वाह बढ़ाने के लिये पहल करेगा, राजिम कुंभ हर साल आयोजित होगा और प्रत्येक १२ वर्ष में एक महाकुंभ का भी आयोजन होगा. तेज कदमों से चलने वाले इस धर्म-प्रेमी नेता ने राज्य के लगभग हर मंदिर की कई बार परिक्रमा कर ली हैं. वे मानते हैं कि भारतीय मानस में पर्यटन का मतलब तीरथ करना होता है इसलिये वे तीर्थ पर्यटन के मामले मे कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते. छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री रहते हुये उन्होंने कई सफलताएं अर्जित कीं. वे राज्य के पहले मंत्री थे जो नक्सली क्षेत्र में बिना किसी भय के अंदर तक गये, जहां किसी राजनेता का जाना असंभव माना जाता था. अविभाजित मध्य प्रदेश में वे विधानसभा के उत्कृष्ठ विधायक भी घोषित किये गये. आज उनके पास राजस्व,संस्कृति,पर्यटन, विधि-विधायी,धर्मस्व, पुनर्वास, वन , खेल और युवा कल्याण जैसे महत्वपूर्ण विभाग हैं. मंजिल के विषय में पूछने पर वे कहते हैं कि वे ईश्वर के बताये मार्ग पर चल रहे हैं और रास्ते में आने वाली मंजिलों को एक पड़ाव की दृष्टि से ही देखते हैं. उनकी नजर में चलना ही जिंदगी है. उनके कार्यों को पसंद करने वाले उनके शुभचिंतकों की यह हार्दिक इच्छा है कि वे शतायु हों और लोक-हित के काम इसी तरह करते रहें. इसी कामना के साथ.
- मेहुल कुमार